कविता
हर दिन
स्मृति के झरोखे से
देख लेना चाहती है
निश्छल मन
उत्सुकता से
तलाशती है
कोमल, पावन, निष्कलंक उजाला
अमृत की अनाम बूँद का स्वाद
अब तक
जगा रहा है आस्था
असहमति के बीच
कहीं
कोई एक टापू है ऐसा
जहाँ हम सब
अपनी अपनी पूर्णता के साथ
पहुँच कर
उस प्रेम का आदान-प्रदान कर सकते हैं
जो सबके हित में अपना हित मानता है
इसी टापू पर से
शुरू हुई थी
रचना संसार की
पर हर दिन अधूरी रह जाती है
उस जगह को देखने की चाहत
जहाँ से शुरू हुई थी
शाश्वत की समय सापेक्ष यात्रा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बजे,
गुरुवार, मई २७, २०१०
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