Thursday, May 27, 2010

शाश्वत की समय सापेक्ष यात्रा


कविता 
हर दिन 
स्मृति के झरोखे से
देख लेना चाहती है
निश्छल मन

उत्सुकता से 
तलाशती है
कोमल, पावन, निष्कलंक उजाला

अमृत की अनाम बूँद का स्वाद 
अब तक
जगा रहा है आस्था

असहमति के बीच
कहीं
कोई एक टापू है ऐसा
जहाँ हम सब
अपनी अपनी पूर्णता के साथ
पहुँच कर
उस प्रेम का आदान-प्रदान कर सकते हैं
जो सबके हित में अपना हित मानता है

 इसी टापू पर से
शुरू हुई थी 
रचना संसार की

पर हर दिन अधूरी रह जाती है 
उस जगह को देखने की चाहत 
जहाँ से शुरू हुई थी
शाश्वत की समय सापेक्ष यात्रा


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बजे,
गुरुवार, मई २७, २०१०

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