अब भाव ये
कि अब तक जो हुआ
उसके लिए व्यक्त करें आभार
अब चाव ये
कि कृतज्ञता के साथ
दाता को भी दें कोई उपहार
अब
कामना की गलियों के पार
निश्चिन्तता के साथ व्यवहार
मुक्ति की हिलोर साँसों में
पग पग पर प्रेम की बौछार
यहाँ कैसे पहुँच जाती है नाव
किसके हाथों होती है पतवार
उत्सव अनाम सौन्दर्य का
छलछलाते आनंद की धार
इस कृतकृत्यता को अपनाऊँ
या इस पर करूं संशय से प्रहार
एक मन कहता है, श्रद्धा से करूं
इस आत्म-वैभव का सत्कार
मैं कब, किस मन की सुनता हूँ
इस पर मेरा है या सृष्टा का अधिकार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १५ मिनट
शनिवार, अप्रैल २४, २०१०
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