(स्थान- संवित साधनायन, आबू पर्वत, चित्र- अभय हर्ष)
कहो
कहाँ रख दूं
यह उजला उपहार
जिसमें है सुन्दर सार,
जिससे वैभव अपार,
जिसको छूकर जागे प्यार,
यह
जो है यूँ तो
अपार विस्तार,
पर सूक्ष्म होकर
आ गया फिर एक बार,
कि जीवन बन जाए त्योंहार,
पर करता ही नहीं कोई इसे स्वीकार
देख नहीं पाते शायद, अविश्वास की सीमा रेखा के पार
तो कहो
है कोई जगह
तुम्हारे पास
जहाँ इसे रख कर चला जाऊं मैं?
अच्छा सुनो,
देख सको तो देख लेना कभी
उपहार तुम्हारा ही है
चाहे फिर आऊं या ना आऊँ मैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, २७ फरवरी १०
सुबह १० बज कर ३३ मिनट
1 comment:
होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
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