Sunday, February 21, 2010

115 उसका भी कुछ सम्बन्ध है हमसे


कभी कभी मौन अपना ऐसे
जैसे शांत साम्राज्य हो अतुलित वैभव वाला
कभी कभी चुप्पी अपनी ऐसी
जैसे गोपाल के पीछे चलता ग्वाला

 इस क्षण और इससे अगले क्षण के बीच 
एक महीन सा उजाला है
इस जगह 
जहाँ समय निश्चल होकर सुस्ताता है
यहाँ पर 
जो अनिर्वचनीय सुन्दरता है
चिड़िया की मधुरतम बोली है
ऐसी शांति है
कि जिसको ढूँढने 
हम एक क्षण से दुसरे क्षण तक दौड़ते रहते हैं हमेशा 
यहाँ मैं ना जाने
कैसे आ गया
और अब यहाँ का चित्र लेकर 
तुम्हे दिखाने का विचार आते ही
फ़ोन आ गया तुम्हारा

लो कालातीत की अनुभूति लेकर
आ गया हूँ
काल की सीमाओं में

जैसे घर की दीवारों में रहते हुए
जानते हैं हम
फैला हुआ है शहर, संसार
घर की सीमा के पार

ऐसे ही
जान गया हूँ
नए सिरे से
काल में हैं हम
पर इस काल से परे भी कुछ है
और
उसका भी कुछ सम्बन्ध है हमसे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ फरवरी २०१०, रविवार
सुबह ८ बज कर ४८ मिनट

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