(छायाकार - अशोक व्यास )
अब अच्छा लगता है
चुनौतियों को बुलाना
उनके साथ खेल रचाना
कभी जीत जाना
कभी हार जाना
चुनौती बाहरी लगती हैं जो
होती तो हैं भीतर की ही हमेशा
हर चुनौती के साथ
कुछ और खुलता है
कुछ और मिलता है
अपने अन्दर
अगर देखा जाए तो
एक अद्रश्य चुनौती है ये
कि किसी भी चुनौती के स्वागत में
हम अपने से बाहर उतनी दूर ना जाएँ
कि फिर अपने तक लौट ही ना पायें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
फरवरी १८, २०१०
सुबह ७ बज कर १६ मिनट
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