Wednesday, December 9, 2009

सबसे अधिक महिमा वाला


कब खुल जाती है नींद
और क्यों?

उठ कर भोर फटने से पहले
देखता हूँ
कहाँ से गयी इतनी ताजगी
इतनी कम नींद में

जानता हूँ
कुछ लोग 'ब्रह्म मुहूर्त' कहते हैं इसे

यानि ऐसा समय
जब 'ब्रह्म' को याद करें
और दिख जाए उसकी छवि

या

ऐसा समय जब
'ब्रह्म' स्वयं को याद करने के लिए
अधिक जाग्रत होता है

क्यों पवित्र कहलाता है यह समय
क्या इसलिए की निशा विदा कहने को है
क्या इसलिए की प्रातः की बेला प्रकट होने को है

या इसलिए
की मन को 'अंधेरे' से 'उजाले' तक ले जाना
सहज होता है इस समय

उठ कर इतनी जल्दी देखने बैठा हूँ मन अपना

मन को देखने के लिए मूँद कर ऑंखें
देखता कुछ नहीं
महसूस करता हूँ
चेतना का चलना

तो मैं चैतन्य हूँ
टटोलता हूँ यह बोध

प्रसन्नता की आभा
सहज ही फ़ैल रही है अंतस में

बाहरी प्रकाश से मुक्त
एकटक देख रहा
उसे जो दिखता नहीं पर है
एक उसे जो किसी का नहीं पर सबका है
एक उसे जिसे जाने बिना व्यर्थ है सब कुछ जानना

ऑंखें खोल कर जो कुछ दिखता है
दृश्य- संसार
वस्तुएं- आकार
उन सबसे अधिक महिमा वाला
यह जो है
सिर्फ़ मेरे भीतर तो नहीं
मुझसे परे
काल से भी परे
सत्ता तो इसी की है

ऐसा सुना है
सुने हुए को सच बनाने के लिए ही
उठता हूँ हर दिन

हर दिन
मैं सच को अपनाने के लिए
स्वयं को अपनाता हूँ
हर दिन
एक पग से दूसरे पग
आनंद से आनंद तक बढ़ता जाता हूँ

अशोक व्यास
न्यू योर्क, अमेरिका
बुधवार, दिसम्बर , ०९
सुबह ३ बज कर १४ मिनट

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