Friday, November 27, 2009

ऊँचे शिखर से


आज सुबह कविता के औचित्य पर
प्रश्न लगा कर
बैठ गया में

निकलते रहे 'ट्रक'
उड़ते रहे 'हवाईजहाज'
छुपाते रहे स्वयं को सजे धजे लोग

पाने की आप धापी में
एक पल को
जब
खो बैठे सारे लोग अपना आप

ऊँचे शिखर से
सार का सुनहरा झंडा फहराती
कविता झिलमिलाई
दूर से ही ना जाने कैसे
मेरे कान में फुसफुसाई

"मैं सबको जोड़ने वाला
सृजनशील, समन्वित सूत्र हूँ
मैं अर्थपूर्ण रस की धारा
मेरे औचित्य पर प्रश्न लगा कर
तुम नहीं छू सकोगे


अशोक व्यास
सुबह ५ बज कर ४ मिनट
शुक्रवार, नवम्बर २७, ०९
न्यू योर्क, अमेरिका
गंगा की धारा."

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