Friday, January 19, 2018
वहाँ जो मौन है सुंदर
वह जो लिखता लिखाता है
कहाँ से हमारे भीतर आता है
कभी अपना चेहरा बनाता
कभी अपना चेहरा छुपाता है
वह जो है शक्ति प्रदाता
कैसे कैसे खेल रचाता है
इस खेल से मेरा क्या नाता
कुछ समझ में नहीं आता है
श्रवण से जो भाव जाग जाता
उसे लेकर मन दौड़ता जाता है
जो विस्तार सुन कर दौड़ लगाता
वो सीमाओं के पार चला जाता है
मुक्ति की झलक में मुग्ध हुआ
शुद्ध आनंद में रम सा जाता है
वहाँ जो मौन है सुंदर, रसमय
उसे कौन शब्दों में बाँध पाता है
वहाँ समय भी एकत्व में डूबा
अपने विभाजन को भूल जाता है
आदि-अंत रहित से एकमेक होने की
जो सर्वकालिक, सर्वव्यापी गाथा है
उसमें जो पूरी तरह रम जाता है
वो क्षुद्रता से परे मुस्कुराता है
उसकी मुस्कान में अनंत रश्मियों का
निःसंग आलोक झरता जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, १९ जनवरी २०१८
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सुंदर मौन की गाथा
है कुछ बात दिखती नहीं जो पर करती है असर ऐसी की जो दीखता है इसी से होता मुखर है कुछ बात जिसे बनाने बैठता दिन -...
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है कुछ बात दिखती नहीं जो पर करती है असर ऐसी की जो दीखता है इसी से होता मुखर है कुछ बात जिसे बनाने बैठता दिन -...
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