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१
मुझको अब अंदेशा है
अपने होने का
और ये बात
किसी को बताने से डरता हूँ
कहीं किसी की नज़र से
यकीन में न बदल जाए
यह अपने न होने का अंदेशा
२
अंदेशा अपनी जगह कायम
और ये ख्वाहिश की
मैं बना रहूँ
बना रहने के लिए होना जरूरी हैं न
इसलिए
होने के अहसास को बनाये रखने
तरह तरह के उपाय करता हूँ
३
लिखना भी एक उपाय है
उस जगह को टटोलने का
जहाँ मेरे होने की चाबी छुपी है
मैं बंद हूँ जिस ताले में
इसे लगाने वाला शायद हूँ तो मैं ही
पर अब जब
न ताला याद, न चाबी याद
याद है तो एक छटपटाहट
जो मांगती है पंख
जो चाहती है उड़ान
और
लिखते लिखते
मैं उड़ान के करीब होते होते
मुझे जकड लेता है
अपने होने का अंदेशा
४
जब मैं हूँ ही नहीं
तो कौन उड़ेगा
कैसे उड़ेगा
क्यूँ उड़ेगा
५
सवालो के पंछी उड़ा कर
अब
चुपचाप देख रहा आकाश
कौन पंछी
कहाँ उतरे
क्या पता
मैं पंछियों को देखते देखते
अपने घर से दूर चला आया हूँ
फिर एक बार
अब मुझे अंदेशा है
कहीं ऐसा न हो
मेरे घर वाले ये सोच लें
की मैं निकल गया हूँ
इतनी दूर की
अब शायद लौट ही न पाऊँ घर तक कभी
६
मैं हूँ
इसका अहसास मुझे घर दिलाता है
घर मुझसे नहीं चलता
घर मुझे चलाता है
चलना जरूरी है
क्योंकि चल कर ही
रुकने का मज़ा आता है
७
घर मैं हूँ
न जाने किसका
पर अक्सर लगता है
कोई मुझमें आता जाता है
और उसके आने जाने से
जिन्दा होने का अहसास
जिन्दा होता जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जान २६ २०१६