ध्यान जिस तरफ रहता है निरंतर
उसके स्वरुप में आनंद निर्झर
वह एक अनादि, अनंत, शाश्वत
उसकी सन्निधि का भाव है सुन्दर
उसमें रमने के लिए ही सारा खेल
उसकी सुमिरन में आनंद का सागर
हर दिशा में उसकी महिमा का गान
उसकी छवि से मुक्ति उजागर
ध्यान उसका, प्रसाद है जिनका
कैसे करूणामय हैं वो गुरुवर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मार्च २९ २०१४
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