Friday, August 9, 2013

पहचान की पुकार


कौन ले आता है अचानक मुझे यहाँ 
जहाँ 
फिर से ढूंढना होता संतुलन 
फिर से गढ़ना होता समन्वय 

धीरे धीरे सहेजना होता बिखरी हुई आश्वस्ति को 
जैसे चित्र पहेली में 
अपने ही हाथ पाँव जोड़ कर 
अपना पूरा रूप रचना पड़े 
चलते चलते 

कौन ले आता है मुझे 
यहाँ 
जहाँ यकायक सब कुछ निःसार सा 
उदासीनता के कुहासे में 
पहचान की पुकार 

पूछता है कोई 
मुझसे मेरा परिचय 
और जैसे 
सत्यापित करना चाहता है 
मैं जो हूँ 
वह सचमुच मैं ही हूँ न 

सत्यापन के इस प्रयास में 
धीरे धीरे 
छूट जाता है 
निरंतरता का एक मधुर रस 
अपने घर में अपने होने का सहज भाव 

सहजता और सन्तुसन प्राप्ति के युद्ध में 
मेरा साथ देते शब्द 
न जाने कैसे 
हर लेते हैं चिंता मेरी 

जगा देते हैं एक गहरी आश्वस्ति 
की 
हो ही जाएगा 
धीरे धीरे 
ठीक ठाक 
सब कुछ 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
९ अगस्त २०१३
 

2 comments:

Anupama Tripathi said...

ईश्वर पर आस्था हो तो आश्वस्ति बनी रहती है ...!!
सुंदर भाव ....!!

प्रवीण पाण्डेय said...

एक पल हैं हम, त्यक्त प्रतीक्षित, दूजे में आश्रय की गोदी।

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