अब सुध नहीं है अपनी पहचान की
उभर रही है गाथा तेरी ही शान की
सुख देती, संतोष से भर देती है
रीत ये रसमय तेरे गुणगान की
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आँख नीद आकाश उड़ान
सारे जग को अपना मान
एक प्यार में अगणित नुस्खे
हर मुश्किल कर दे आसान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
10 दिसंबर 2012
1 comment:
एक दृष्टि भर कृपा तुम्हारी,
ज्ञात मुझे मैं क्या कर जाऊँ।
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