Thursday, October 4, 2012

जो हमको मनुष्य बनाती है



बेटा
एक उम्र तक 
जगत जननी जाग्रत रखती है 
वह लौ 
जो तुम्हें सुन्दर, आकर्षक, लुभावना,
 शुद्ध प्रेम से परिपूर्ण 
बनाती है 
तुम जहाँ जाओ, सहज आनंद की आभा  
साथ चली आती है 

तुम्हें देख कर 
लोग अपनी चिंताएं भुलाते हैं 
तुम्हें देख कर 
अपने मन को खिलाते हैं 
धन्य हो जाते है वो 
जो तुम्हारी आँखों से आँख मिलाते हैं 
और तुम्हारे द्वारा
अपनी भीतर सर्वोत्तम को छू आते हैं 

पर बेटा 
धीरे धीरे आ जाता है बदलाव 
खेलने लगते तुमसे भी 
छलिया गति और ठहराव 
अपनी चाहतो के साथ 
होता जाता तुम्हारा फैलाव 
कभी जोड़ता, कभी तोड़ता तुम्हें 
जगत से तुम्हारा लगाव 


शारीरिक विकास की प्रक्रिया तो 
प्राकृतिक रूप से चलती जाती है 
पर मानसिक और आत्मिक विकास में 
तुम्हारी सजगता बिना 
वो जन्मजात सहचरी 'लौ कहीं' लुप्त हो जाती है 

वो एक 'लौ'
जो हमको मनुष्य बनाती है 
न जाने हम सबमें जगदम्बा 
कैसे कहाँ छुपाती है 

इस 'लौ' को जाग्रत रखने की यात्रा 
हमारे जीवन को जीवन बनाती है 
और निहित क्षमताओं का 
रचनात्मक प्रयोग करना सिखाती है 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
4 अक्टूबर 2012



6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रयोग रचनात्मक ही बने रहें, विनाशात्मक न हों।

Shalini kaushik said...

nice presentation

Anupama Tripathi said...

इस 'लौ' को जाग्रत रखने की यात्रा
हमारे जीवन को जीवन बनाती है

दीपो ज्योति परब्रमहा ...
दीपो ज्योति जनरदाना ॥
दीपो हरतु मे पाप ...
दिवयो ज्योति नामोस्तुते ......!!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
क्या कहने



मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

vandana gupta said...

वो एक 'लौ'
जो हमको मनुष्य बनाती है
न जाने हम सबमें जगदम्बा
कैसे कहाँ छुपाती है

छुपाती है तो जागृत भी वो ही करती है।

Anju (Anu) Chaudhary said...

रचनात्मक के साथ सोच का सकारात्मक बनना ज्यादा जरुरी है....

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