Saturday, April 14, 2012

तकनीकी घुसपैठ

मुफ्त में
नहीं है सुविधा
ब्लॉग लिखने की
अब
होने लगा है
आक्रमण
विज्ञापनों का
संवेदनशील अभिव्यक्ति के माथे पर
धर जाते हैं
वे तकनीकी हाथों के
संश्लिष्ट, सूक्ष्म तंतुओं की सहायता से
अपने सन्देश

पृष्ठ के स्वरुप के साथ
होता है हस्तक्षेप
भावों की अदला-बदली में


ठहर जाए

सूर्य के उतरने का
चुपचाप आलोकित क्षण
शब्दों के बीच
शायद कहीं
पर
इतने पावन 
गंगा जल को अंजुरी में भर
जहाँ अर्पित करना है
कहीं छिन्न-भिन्न 
न कर दे
यह
तकनीकी विज्ञापनों का
इतना
सूक्ष्म. सशक्त आक्रमण



और 
अब  
कभी कहीं 
एक चीख
अपनी स्वतंत्रता की
धीमे होते होते
मौन तक पहुँचने के
नए रास्ते ढूंढती है
जहाँ
तकनीकी घुसपैठ की
दखलंदाज़ी से परे
सीधा संवाद हो पाए
अपने
मूल, निष्कलंक, प्राक्रतिक सौन्दर्य के साथ 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ अप्रैल २०१२ 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बलात घुस आते हैं ये विज्ञापन आपकी चिन्तन प्रक्रिया में।

सुंदर मौन की गाथा

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