मुफ्त में
नहीं है सुविधा
ब्लॉग लिखने की
अब
होने लगा है
आक्रमण
विज्ञापनों का
संवेदनशील अभिव्यक्ति के माथे पर
धर जाते हैं
वे तकनीकी हाथों के
संश्लिष्ट, सूक्ष्म तंतुओं की सहायता से
अपने सन्देश
पृष्ठ के स्वरुप के साथ
होता है हस्तक्षेप
भावों की अदला-बदली में
ठहर जाए
सूर्य के उतरने का
चुपचाप आलोकित क्षण
शब्दों के बीच
शायद कहीं
पर
इतने पावन
गंगा जल को अंजुरी में भर
जहाँ अर्पित करना है
कहीं छिन्न-भिन्न
न कर दे
यह
तकनीकी विज्ञापनों का
इतना
सूक्ष्म. सशक्त आक्रमण
और
अब
कभी कहीं
एक चीख
अपनी स्वतंत्रता की
धीमे होते होते
मौन तक पहुँचने के
नए रास्ते ढूंढती है
जहाँ
तकनीकी घुसपैठ की
दखलंदाज़ी से परे
सीधा संवाद हो पाए
अपने
मूल, निष्कलंक, प्राक्रतिक सौन्दर्य के साथ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ अप्रैल २०१२
1 comment:
बलात घुस आते हैं ये विज्ञापन आपकी चिन्तन प्रक्रिया में।
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