कब तक रह सकते हो
ओढ़ कर सोते हुए
ये जो जीवन है
जगा ही देता है
जाग कर
कैसे रह सकता है
कोइ निष्क्रिय
कर्म, गति, प्रकटन
चिंतन, आत्म-मंथन
तब कहीं, धीरे-धीरे
आता है परिवर्तन
जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
पूरी तरह जागना तब है, जब
बदलाव से परे भी देख पायें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अगस्त २०११
3 comments:
जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
पूरी तरह जागना तब है, जब
बदलाव से परे भी देख पायें
आपकी यह प्रस्तुति सुन्दर और प्रेरक है.
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार
'जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों द्वारा
विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही
गुणों में बरतते हैं,ऐसा समझता हुआ जो
सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकी भाव से
स्थित रहता है,वह उस स्थिति से कभी
विचलित नहीं होता.'
सुन्दर प्रस्तुति
जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
पूरी तरह जागना तब है, जब
बदलाव से परे भी देख पायें
बेहतरीन अर्थ बताया है।
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