Thursday, August 25, 2011

जागने का अर्थ


कब तक रह सकते हो
ओढ़ कर सोते हुए
ये जो जीवन है
 जगा ही देता है   


जाग कर
  कैसे रह सकता है
कोइ निष्क्रिय

कर्म, गति, प्रकटन
चिंतन, आत्म-मंथन
 तब कहीं, धीरे-धीरे  
 आता है परिवर्तन

  जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
 पूरी तरह जागना तब है, जब
 बदलाव से परे भी देख पायें

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अगस्त २०११   


 

3 comments:

Rakesh Kumar said...

जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
पूरी तरह जागना तब है, जब
बदलाव से परे भी देख पायें

आपकी यह प्रस्तुति सुन्दर और प्रेरक है.

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार
'जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों द्वारा
विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही
गुणों में बरतते हैं,ऐसा समझता हुआ जो
सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकी भाव से
स्थित रहता है,वह उस स्थिति से कभी
विचलित नहीं होता.'

Unknown said...

सुन्दर प्रस्तुति

vandana gupta said...

जागने का अर्थ, सिर्फ इतना ही नहीं
की बदलाव को बुलाएँ
पूरी तरह जागना तब है, जब
बदलाव से परे भी देख पायें

बेहतरीन अर्थ बताया है।

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