Wednesday, August 10, 2011

अभी दूर सही शिखर


अभी दूर है
शिखर
 हाँफते हाँफते  
और न जाने कितनी
चढ़ाई चढ़नी है 
रुकते-सुस्ताते
कभी छटपटाते, कभी मुस्कुराते
देखने हैं
ये सभी पत्थर
 जो पथ बन कर पहुंचा रहे हैं   
गंतव्य तक मुझे

   अभी दूर सही शिखर
चुका नहीं मेरा हौसला
  शेष है धैर्य और
 ये आस्था भी
 की तुम ही खेल रहे हो
छुप्पा-छुप्पी मुझसे

  ना जाने क्यूं
 मैं अब भी 
मानता हूँ
   की तुम्हारी जीत मैं भी
      मेरी हार नहीं है

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अगस्त 2011 


1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

एक समय में एक ही पग,
हम ऐसे ही नापें जग।

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