यह सब
जो दोहराता है अपने आपको
संतोष-असंतोष
आशा-निराशा
रसमयता-रसहीनता
इस सब दोहराव के बीच
इनसे जुड़ा
इनको जोड़ने वाला
'मैं'
कहीं गुम हो जाता है
छूट जाता है
मेरा "होने"का भाव,
अज्ञात खाई मैं
गिरती चली जाती हैं
अनुभूतियाँ
सारे अनुभवों को भोगता हुआ भी
कहीं नहीं होता हूँ मैं
और तब एक महीन का
ख्याल आता है
की कुछ ना होने
की प्रक्रिया में
समर्पण की जगह अहंकार को
लेकर निकल पडा था मैं
कुछ ना होते हुए
शेष रह गया वह
जिससे सब पीड़ा है
अब
सजगता से दोहरानी है
कुछ ना होने की
प्रक्रिया कुछ ऐसे की
मेरा "कुछ ना होना" "सब कुछ होना" हो जाए
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ अगस्त २०११
4 comments:
हर समय कुछ न होने का भाव और सब कुछ पाने की आकांक्षा।
very true inner feelings....Manjula Chaturvedi
कल 15/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कुछ ना पाने का भाव लिए सब कुछ पाने की आकांछा बताती शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /
ब्लोगर्स मीट वीकली (४)के मंच पर आपका स्वागत है आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आभार/ इसका लिंक हैhttp://hbfint.blogspot.com/2011/08/4-happy-independence-day-india.htmlधन्यवाद /
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