१
बैचेनी है जाने क्यूं इतनी सारी
रात हो गयी है मुझ पर कितनी भारी
वक्त पड़े क्यूं काम नहीं आती मेरे
कहाँ धरी रह जाती है सब तैय्यारी
२
नींद चुरा कर कौन कहाँ ले जाता है
एक अधूरा सपना सा दे जाता है
साँसों में एक राग टूटता दीखता है
बरसों के सावन को झूठ बताता है
३
अब जो देखा, मचान पर देखा
तीर उसका, कमान पर देखा
सिमटे मेले वो मौज -मस्ती के
सुख का ठेला, ढलान पर देखा
4
साया बरगद का घना दे मौला
अपने जैसा ही बना दे मौला
फूल ऐसे खिला दे धड़कन में
हर एक रूठे को मना दे मौला
हर एक रूठे को मना दे मौला
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, १६ जून 2011
1 comment:
और क्या चाहूँ मौला?
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