Saturday, June 11, 2011

सत्य की वो अनवरत गाथा


कैसे तय होता है
कौन कितना कर सकता है
कितना प्रभाव हो जाए
एक मनुष्य के होने से

यदि 
स्वभाव से होता है प्रभाव
तो प्रश्न यह 
की कैसे बनता है स्वभाव
और
एक संरचना आदतों की
बन चुकी है जो
क्या बदला जा सकता है इसे
यदि हाँ
तो कैसे
किसके प्रस्ताव से
सूत्रपात होता है  
इस आन्तरिक परिवर्तन का
वह जिसे हम
इच्छा शक्ति कहते हैं
क्या एक निश्चित मात्रा में मिलती है हमें
या बढाया जा सकता है इसे

यदि हाँ
तो कैसे
कैसे हम आश्वस्त हों की
अपार शक्ति है हममें 
और
हम इसे उजागर कर सकते हैं
हम  जहां भी हैं,जैसे भी हैं
और अधिक संवर सकते हैं

परिष्कार की पुकार सुन कर
सबके लिए प्यार चुन कर

मैं
कविता के अंतिम छोर पर
जहाँ ढूंढ रहा हूँ खुदको
क्या यहाँ पर 'अनंत है'
यह विस्तार
जो सीमित नहीं है मेरे जाने पहचाने 'मैं' तक

यह मुझे जिस भाव से अपनाता है
उसमें हर दुराव-छिपाव मिट जाता है
सुनाई देती है सत्य की वो अनवरत गाथा
जो है सबके लिए, पर बिरला ही इसे सुन पाता है   

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, ११ जून 11 
   

3 comments:

Vivek Jain said...

सुंदर प्रस्तुति, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय said...

जितना प्रतिशत मनुष्य होना रह जाता है, जीवन भर कचोटता रहता है।

Arun sathi said...

अति सुन्दर

सुंदर मौन की गाथा

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