Wednesday, June 8, 2011

नित्य नूतन का पता




पंछियों की चहचहाहट,
ताजगी का स्पर्श लेकर बहती
मधुर पवन,
उजियारे के पुष्प का
धीमे धीमे खिलना,

अगणित रचनाएँ कण कण में
जगा कर

आदित्य प्रकट होते हैं

अपनी महिमा और गरिमा के साथ,

अलग अलग कोण से 
हमें देखते
स्वयं को दिखाते

पूर्व से पश्चिम की ओर चलते भास्कर
हमारे लिए
खोल देते हैं 
एक नया दिन,

हर सुबह 
एक नया रिश्ता बनाती है
हमारे साथ
हर दिन होती है 
कोई न कोई
नयी बात,

कितना अच्छा है
एक जैसे नहीं होते दिन
वर्ना हम देख ही ना पाते
अनंत रश्मियों का श्रृंगार करता
यह जीवन
जो 
पाने और खोने का खेल सजा कर
इससे परे के स्थल पर ले जा कर
हमारे लिए
आन्तरिक समृद्धि का सार
खोलता है

सुबह के साथ नया सम्बन्ध बनाते बनाते
हम पा लेते हैं
नित्य नूतन का पता


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जून २०११   
 



            

4 comments:

Anupama Tripathi said...

हम पा लेते हैं
नित्य नूतन का पता

nishchay hi ..!!

प्रवीण पाण्डेय said...

दिन का नयापन सुबह निर्धारित कर देती है।

Anupama Tripathi said...

इस बार कुछ विशेष है मेरे ब्लॉग पर ..
आपकी टिपण्णी चाहूंगी ...
आभार.

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...