हम कब तक उलझे रहेंगे
मरने-मारने में,
जीवन के शुद्ध सौन्दर्य से परे
कब तक
हिंसा की ज्वाला
किसी एक विचार/अहंकार
को स्थापति करने
या नकारने के लिए
विध्वंसक जीभ लिए
चाटती रहेगी बस्तियां
२
हम कब तक
भूले रहेंगे
प्रेम का शाश्वत सन्देश
संकीर्णता के नए नए फंदे
कब तक
कसते रहेंगे
बस्तियां
और
कराहों के बीच
कुछ नए काले बीज
अपनी विरासत मान कर
कब तक
करते रहेंगे हम
नफरत की खेती
३
पेड़, पर्वत
ज़मीन, आस्मां
हवा, झरने
ये सब
जो कुछ कहना चाहते रहे हैं
हमसे,
शायद
रखे रहेंगे अपनी
चुप्पी में यूं ही
और
अपने ही शोर की कैद में
साँसों के अंतिम छोर तक
पहुँचते हुए हम
जाने-अनजाने
छटपटाहट के
नए चिन्ह छोड़ते जायेंगे
4
क्या इस तड़प को
नहीं दे सकते
हम
प्रेम का वो उपहार
जिसके छूने मात्र से
सार्थक हो सकता है
हमारा होना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ मई २०११
मरने-मारने में,
जीवन के शुद्ध सौन्दर्य से परे
कब तक
हिंसा की ज्वाला
किसी एक विचार/अहंकार
को स्थापति करने
या नकारने के लिए
विध्वंसक जीभ लिए
चाटती रहेगी बस्तियां
२
हम कब तक
भूले रहेंगे
प्रेम का शाश्वत सन्देश
संकीर्णता के नए नए फंदे
कब तक
कसते रहेंगे
बस्तियां
और
कराहों के बीच
कुछ नए काले बीज
अपनी विरासत मान कर
कब तक
करते रहेंगे हम
नफरत की खेती
३
पेड़, पर्वत
ज़मीन, आस्मां
हवा, झरने
ये सब
जो कुछ कहना चाहते रहे हैं
हमसे,
शायद
रखे रहेंगे अपनी
चुप्पी में यूं ही
और
अपने ही शोर की कैद में
साँसों के अंतिम छोर तक
पहुँचते हुए हम
जाने-अनजाने
छटपटाहट के
नए चिन्ह छोड़ते जायेंगे
4
क्या इस तड़प को
नहीं दे सकते
हम
प्रेम का वो उपहार
जिसके छूने मात्र से
सार्थक हो सकता है
हमारा होना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ मई २०११
2 comments:
क्या इस तड़प को
नहीं दे सकते
हम
प्रेम का वो उपहार
जिसके छूने मात्र से
सार्थक हो सकता है
हमारा होना
आपके सात्विक उद्गार सीधे हृदय को छूते हैं.हिंसा ,अहंकार,संकीर्णता आदि आसुरी वृतियां हैं.
इनसे छुटकारा केवल 'प्रेम' और 'भक्ति' की चिन्मय वृतियों से ही मिल सकता है.
सुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति के लिए आभार.
आपका मेरी ई मेल पर 'टिप्पणियाँ' लुप्त हों जाने के सम्बन्ध में सुन्दर,प्रेरक व स्नेहपूर्ण उत्तर मिला.मै दिल से आभारी हूँ आपके स्नेह व प्रेम का.
आनन्द के सागर में उतराने के बाद ईर्ष्या और हिंसा व्यर्थ लगती है।
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