Sunday, May 29, 2011

रोशनी के घेरे से


दिन की सीढ़ियों की संख्या
बदलती जाती है हर दिन

कोई निर्देशक
नृत्य करवाने मुझसे
करता है संकेत
अब यहाँ
अब यहाँ
फिर वहां खड़े होकर
बनाओ मुद्राएँ

इस ताल पर ऐसे 
झुकना उठाना वहां

उस लय संग थिरक कर
फिर तुरंत हट जाना
रोशनी के घेरे से

निर्देशक अदृश्य है
स्थितियां भी
सजाता है
अनायास ही 
नए नए ढंग से
मुझे नचाने

और तब
जब नृत्य निर्देशक के
हाव भाव समझ कर
अपनी सम्पूर्णता से
झूमता हूँ
एकमेक हुआ
उसके आत्म-संयोजन संग

दृश्यों का बहाव
अनुभूति का सौंदर्य
रंगों का प्रकटन
और
संतोष प्रद सार सागर तक की
यात्रा
मेरे ह्रदय में
खोल देती है
उपहार 
अक्षय प्यार का

जिसे बांटने 
फिर फिर नृत्य करता
और हर कदम 
मेरे पांवों से कृतज्ञता की 
मगल छाप पड़ती है
धरती पर
 तब
लगता है
हाँ, नृत्य निर्देशक को
भला लगा है
नृत्य मेरा

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ मई २०११
                    

2 comments:

vandana gupta said...

वाह्…………अनूठी और बेजोड।

प्रवीण पाण्डेय said...

वह निर्देशक, नृत्य हमारा।

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