दिन की सीढ़ियों की संख्या
बदलती जाती है हर दिन
कोई निर्देशक
नृत्य करवाने मुझसे
करता है संकेत
अब यहाँ
अब यहाँ
फिर वहां खड़े होकर
बनाओ मुद्राएँ
इस ताल पर ऐसे
झुकना उठाना वहां
उस लय संग थिरक कर
फिर तुरंत हट जाना
रोशनी के घेरे से
निर्देशक अदृश्य है
स्थितियां भी
सजाता है
अनायास ही
नए नए ढंग से
मुझे नचाने
और तब
जब नृत्य निर्देशक के
हाव भाव समझ कर
अपनी सम्पूर्णता से
झूमता हूँ
एकमेक हुआ
उसके आत्म-संयोजन संग
दृश्यों का बहाव
अनुभूति का सौंदर्य
रंगों का प्रकटन
और
संतोष प्रद सार सागर तक की
यात्रा
मेरे ह्रदय में
खोल देती है
उपहार
अक्षय प्यार का
जिसे बांटने
फिर फिर नृत्य करता
और हर कदम
मेरे पांवों से कृतज्ञता की
मगल छाप पड़ती है
धरती पर
तब
लगता है
हाँ, नृत्य निर्देशक को
भला लगा है
नृत्य मेरा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ मई २०११
2 comments:
वाह्…………अनूठी और बेजोड।
वह निर्देशक, नृत्य हमारा।
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