Sunday, February 6, 2011

जिससे लिखा जाता है सब कुछ


अपनी ही अंगुली
अनजाने में
लील गयी 
एक नन्हे से क्षण में
वह सब जो लिखा गया
और फिर
लौट कर
नए सिरे से
उड़ते बादलों के चित्र लेते हुए
इस बार दिखाई देता है
उड़ गयी है पेड़ पर से चिड़िया
नीले आकाश पर तैरते
है सुनहरे बादल 
 
अभी थोड़ी देर पहले 
बैठी थी नन्ही नन्ही चार चिड़ियाएँ
पेड़ की ऊपरी शाखा पर
देख रही थीं
आकाश, सड़के, मकान
सोच रही थीं 
किस दिशा में उड़ कर
अपने पंखों में छुपी उड़ान उजागर करें
या शायद ये कि कहाँ चुग्गे से चोंच भरें


दिन एक खाली किताब है
जिसे ज्ञात-अज्ञात लेखकों के साथ
लिखने से पहले
अपने हथेलियों में
कर रहा हूँ आव्हान
उस स्वर्णिम आभा का
जो खुद कभी नहीं लिखी जाती
पर जिससे लिखा जाता है सब कुछ 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, ६ फरवरी २०११



1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

एक माध्यम है, एक स्रोत है।

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