अकुलाहट उड़ान की
नए सिरे से
थपथपा कर कभी-कभी
अपने आप तक
पहुँचने के
नए पथ का
आविष्कार करने की
प्रेरणा लेकर आती है
ऐसे में
मैं कुम्हार के हाथ की
गीली माटी की तरह
नए रूप में
गढे जाने को तैयार
जब
विराट कुम्हार को देखता हूँ
उसकी विस्तृत आश्वस्ति
देती है संकेत
सिर्फ माटी बनने से ना होगा
इस खेल में
कुम्हार भी बनना है तुम्हे ही
मुझे स्मृति में रख कर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ नवम्बर २०१०
1 comment:
विराट कुम्हार के गढ़े बर्तन।
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