Sunday, November 7, 2010

और फिर नए सिरे से...





और
फिर नए सिरे से
जब शुरू हुआ जीवन
बच्चे ने आसमान से पहले 'फेसबुक' देखा
जन्मपत्री से पहले बनवा दिया गया उसका 'ईमेल' अकाउंट 
 
२ 
 
और
फिर नए सिरे से
दुनिया का परिचय बताने
माँ ने 'स्काइप' से बच्चे को
दिखवा दिए 
कार, ट्रेन, हवाईजहाज
फिर पेड़, नदी, पहाड़ की बारी आने तक
नींद आ गयी थी बच्चे को


और फिर
नए सिरे से
माँ जब दे रही थी
परिचय 'डिगिटल फोटोफ्रेम' से
चाचा-चाची, मामा-मामी, दादा-दादी, नाना-नानी का
साथ में 
फुसफुसा कर कहा उसने
'इन सबसे सावधान रहना'

4

और फिर
नए सिरे से
सोचने लगा कवि
कैसे बदले 
सत्य के 'तात्कालिक रंग'
कैसे बदले
जगत से जुड़ने का ढंग 
कैसे बढे प्रेम और विश्वास
कैसे सहज आत्मीयता का हो विकास


और फिर 
नए सिरे से
यही समाधान आया उसके पास
माँ-माँ 
तुम ना बदलो
तुम ही हो मानवता की आस


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
रविव्वर, ७ नवम्बर २०१०
 

 


1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बस प्रेमभरे सम्बन्ध न बदलें।

सुंदर मौन की गाथा

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