Sunday, August 22, 2010

तुम प्यार का सागर बहाओ




 
1
अपने आप
उग आई पटरियां
चेतना भागने लगी
उजियारे खेतों के बीच
संवेदना के गाँव से होकर
मंगल कामना का सन्देश लेकर

2
 इस बार 
वो सोचने लगा
कैसे कोई हो सकता है तैयार
क्या हो, अगर एक इंसान हो जाए लाचार

सारी शिक्षा, सारे शुभ भाव
क्या तिरोहित नहीं हो जायेंगे
अगर वो हम पर
बन्दूक की गोलियां चलाएंगे
निर्दोष लोगों को सतायेंगे 
3
ये क्या है 
जो हमें सुरक्षित रखे हैं
ये क्या है
जो हमें सुरक्षित रख सकता है

वो सब जघन्य
और क्रूर, अमानवीय, घृणित व्यवहार 
जो दुनिया के किसी एक
हिस्से में होता है
वो कहीं भी दोहरा सकता है अपने
आप को
4
उसने फिर सोचा
यदि स्याही फ़ैल सकती है
तो क्या उजाला नहीं फ़ैल सकता
यदि घृणा पसर सकती है
तो क्या प्रेम का विस्तार नहीं हो सकता 

'श्रद्धायुक्त सोच 
एक सुरक्षा कवच 
बनाती है
ऐसी सुरक्षा
जिसके कारण 
मानवता हर हमले के बाद
भी
बची रह पाती है
5
चाहे कोई नफरत का लावा बहाए 
तुम प्यार का सागर बहाओ

वो भले ही विनाश का बिगुल बजाये 
तुम सृजनशीलता की शहनाई सुनाओ

बढ़ो शाश्वत प्रेम पताका लिए 
निर्भय, निर्द्वंद
निरंतर निर्माण का शंखनाद बजाओ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, अगस्त २२, २०१० 

2 comments:

Shabad shabad said...

उसने फिर सोचा
यदि स्याही फ़ैल सकती है
तो क्या उजाला नहीं फ़ैल सकता
यदि घृणा पसर सकती है
तो क्या प्रेम का विस्तार नहीं हो सकता .....
Bahut sunder bhav....
baat to sochne aur karne kee hai...agar pyar kee bhavna se sochenge to zaroor pyar badega.

प्रवीण पाण्डेय said...

निरंतर निर्माण का शंखनाद बजता रहे।

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