जहां भी हो
अचानक, चुपचाप, देखते-देखते
सबके बीच से
उठा कर आपको
ले जा सकती है
चुरा कर
साथ अपने
'नींद',
नींद, निश्छल, निर्दोष और
विश्रांति प्रदायक सखी
जाग्रति के विपरीत लगती है यूं तो
पर
जाग्रत रहने के लिए
आवश्यक स्फूर्ति देकर
फिर छोड़ देती है
वहीं
अनायास
२
सोना भी है कुछ ऐसा
जो किया नहीं जाता
हो जाता है,
ऐसा होना
जिसमें इंसान
अपनी सुध खो जाता है
हमारे संतुलन के लिए
आवश्यक है
नींद,
सुन्दरता का अनूठा राजद्वार
खोलती है
सपनो के साथ साथ
हकीकत से जुड़ने के लिए भी
जरूरी है
कि हम
जहां हैं
वहां से दूर
किसी ऐसे लोक तक जाएँ
जहां अपनी पहचान का सीमित घेरा छूट जाता है
परिधि विलीन होती
और हम
चेतना के साथ ऐसे एकमेक होते
कि जैसे हम ही हम हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ अगस्त २०१०
2 comments:
yes
नींद बड़ी गूढ़ यात्रा है।
Post a Comment