Friday, July 2, 2010

कोई मंगल भाव नित्य लहराता है


एक क्षण ऐसा जब
यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है
मैं लिखता हूँ कविता
या शब्द द्वारा कोई मुझे रचता जाता है
 
मैं जिसकी रचना हूँ, वो
हर दिन मुझे नए सिरे से रचता है
फिर भी बीते हुए कल से कुछ
 आने वाले कल के लिए बचता है
 
आज अपने 'अगले-पिछले' सबका सम्मलेन बुलाया है
जिससे किसी की करूणा का पथ उजागर हो आया है
 

क्यूं याद आई, इतने बरसों बाद 
 गंगा की डुबकी, दादा की याद
 
यूँ लगता है, सारा अनुभव बस कल का था 
जब, गंगा में स्मृतिरस नयनों से छलका था

जीवन का मुखरित रूप तो बीत जाता है
पर कोई मंगल भाव नित्य लहराता है
जब जब उनकी यादों का झोंका आता है
मन सहज ही पावनता का प्रसाद पाता है 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १० मिनट पर
शुक्रवार, २ जुलाई २०१०

4 comments:

vandana gupta said...

बहुत खूब कहा…………हम लिखने वाले कौन हैं वोही तो सब कार्य करता है …………।बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Sunil Kumar said...

यूँ लगता है, सारा अनुभव बस कल का था
जब, गंगा में स्मृतिरस नयनों से छलका था
सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

सूर्यकान्त गुप्ता said...

प्रभु कृपा ! बहुत सुंदर रचना।

प्रवीण पाण्डेय said...

रचना होती है या की जाती है, चिन्तन का विषय है ।

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