१
टप टप
बूँद बूँद
आशीष
भोर फटने से पहले ,
लगा अपनी छाती से
दुलार रही जगदम्बा
२
मुस्कान माँ की
हर लेती आशंका
बिसरती अपेक्षा आकार की
हाथ थाम मेरा
खेल खेल में
भागती साथ मेरे
फिर रुक कर
खिलखिलाती है
हंस हंस बताती है
माँ पर सब छोड़ कर देखो,
मैय्या तुम्हें कहाँ से कहाँ पहुंचाती है
३
सब 'माँ' पर छोड़ा
तो मेरा क्या?
मायूसी से पूछा जब
मूक नैनों ने
बोल पडी माँ
अपने नैनों से
'तुम्हारा?"...
"तुम्हारी माँ है ना!"
४
"पर?",,
ठीक है
हंसी माँ
खिलखिलाई
अपने रूप रूप में समाई
पर जाते जाते ये बात बताई
"ठीक है." तुम 'पर' का खेल रचाओ
अपनी मैं की धुरी पर अनुभव सजाओ
बुला लेना मुझे
जब खेलते खेलते थक जाओ
दौड़ी आऊंगी मैं,
जब जब भी तुम बुलाओ
५
आज मैं ने माँ को बुलाया
अपने आंसूओं का समंदर दिखाया
अपने हार के चिन्हों को भी नहीं छुपाया
संशय के जंगलों की
कंटीली झाड़ियों का किस्सा सुनाया
मेरी हालात देख माँ का मन भर आया
थोड़ा संभला जब तो समझ ने सुझाया
शायद ऐसा इसलिए हुआ
क्योंकि मैं ने माँ को बिसराया
६
माँ हाथ पकड़ कर
मेरी कलम चलाओ
अपने महिमा
अपने शिशु से लिखवाओ
छुड़ा दो अब 'पर' मुझसे
मेरा ये 'मैं' का खेल हटाओ
क्षमा करो माँ , मूढ़ हूँ
अब मुझे छोड़ कर न जाओ
अशोक व्यास
रविवार, दुर्गाष्टमी
९ अक्टूबर २०१६
न्यूयार्क
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