एक मैं निश्चल
मुझे अब भी तुम्हारी
याद आये है मुसलसल
नहीं सूखा मेरे दाता,
मेरी आँखों का ये जल
नहीं समझा जगत को
मैं तो अब तक
बहूँ भावुक नदी,
जग समझे पागल
मैं सब कुछ लाँघने
तैयार होकर
ठिठक जाऊँ
जब आए उड़ने का पल
जब आए उड़ने का पल
मैं इस पल में
दिखाई दे रहा पर
है साँसों में
युगों - युगों की हलचल
ये बस्ती रात दिन भागी
मगर पहुँची कहाँ है
देखो पहुँचा हुआ हूँ
एक मैं निश्चल
-
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ जनवरी २०१९