हो सकता है न
की अंतिम दिन हो आज ही
आ जाए बुलावा
चलना हो छोड़ कर खेल सारा
यह सम्भावना
जो झूठ भी नहीं है इतनी
क्यों की होता आया है
जाते रहे हैं
आये हुए लोग
बिना जाने
अपने जाने का समय
पर
अमंगल लगता है न
जीवन को खोने का उल्लेख
यानि
जीवन होना मंगल है
पर याद कहाँ रहता है यह भी
हर दिन
इसीलिये जलाते हैं दीप
याद कर राम जी के लौटने को
लौटते हैं
हम मंगल चेतना के बोध क्षेत्र में
दीप के उजियारे से जुड़ कर
भर देते हैं अंतस में
आलोक
पावन प्रसन्नता का
और
सुन पाते हैं
मंगल ध्वनि
साँसों में
दीप पर्व
अपने होने के सौभाग्य की चिर स्मृति का आव्हान है
और इस कल्याणमयी कनक प्रभा का गुणगान है
पावन प्रसन्नता का
और
सुन पाते हैं
मंगल ध्वनि
साँसों में
दीप पर्व
अपने होने के सौभाग्य की चिर स्मृति का आव्हान है
और इस कल्याणमयी कनक प्रभा का गुणगान है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
11 नवम्बर 2012