आह
ये कसक तुम्हारे न होने की
कैसे किसी अनाम क्षण में
सहसा उफनती है
देखे - भोगे सत्य को भुला कर
अब भी
'काश' शब्द की चाबी से
खोलता हूँ
काल्पनिक जगत के द्वार
और मान बैठता
बैठे हो तुम सागर पार
2
आह
यह जो क्रंदन है
यह जो एकाकीपन है
इसमें भी तुम्हारी स्मृति का
वसंत सघन है
इसी से
सहज प्रेम का प्रकटन है
भीम चाचाजी आपकी
अप्रतिम आत्मीयता को नमन है
३
अहा
इस संसार में सौंदर्य देखना दिखाना
आपने जीकर जो सिखाया
उसको लेकर मैं इस क्षण में
पावन प्रेम को छू पाया
मायाधिपति का
स्मरण संबंधों के साथ
मुझे जीना सिखाती है
ये स्मृतियों की माया
४
वाह
जीवन मृत्यु, संयोग वियोग
कुछ समझ नहीं पाता हूँ
पर निश्छल करूणा के अनुभव
छूकर खिल जाता हूँ
फिर पोंछ कर अपने आंसू
यूं ही मुस्कुराता हूँ
जीवन मृत्यु, संयोग वियोग
समझ नहीं पाता हूँ
क्या छुपा था भीम चाचाजी
की उनके स्मरण में
शाश्वत की सुवास पाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ मार्च २०१६
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