(स्थान- बीकानेर हाउस, आबू पर्वत) चित्र - अशोक व्यास |
१
अब भी होता है ऐसा
दिन ऐसे
जैसे नया
नया यानि की
सोचना होता है
हूँ कहाँ
जाना कहाँ है
क्यों जाना है
किसलिए जाना है
सोचना होता है
इस दिन का
क्या बनाना है
इसके उपलब्ध होने का मूल्य
कैसे चुकाना है
२
अब भी
होता है ऐसा
जाने हुए को फिर से जानने में
एक नए आविष्कार का बोध होता है
वो जो हमेशा साथ रहा है
उसके पास होने का
एक नया अहसास होता है
मैं
अपने घर से
नवजात शिशु की तरह निकलता हूँ
दिन ढलता जाता है
पर मैं नहीं ढल पाता हूँ
मुझमें ये कैसा सूरज है
जो कभी न अस्त होता है
अब ये जो शब्दों के बीच में
नए पुष्पों वाले पौधे
जो भी बोता है
जिसको देखे से
अनवरत मुक्ति का
परिचय होता है
कैसे उसका नाम लूँ
जिसके नाम से
नाम और रूप का
ये बंधन खोता है
३
अब जब
नूतनता की लय
में
मेरा नित्यनूतन रूप
उजागर होता है,
न भय, न संशय
उसकी अनुग्रह किरण में
आश्वस्ति का सागर सा
छुपा होता है
अब न जाने क्यों
अक्षय आनंद के स्त्रोत सा लगता है
यह एक वाक्य पुराना
की
जो होता है
अच्छे के लिए होता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ अक्टूबर २०१४
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