लिख लिख कर मिटाया
भाव को बिसराया
थपथपाया था जिसने
वो हाथ न आया
मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ
नए रास्तों के बुलावे पर यूं ही मुस्कुराता हूँ
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ सितम्बर २०१४
3 comments:
मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ
नए रास्तों के बुलावे पर यूं ही मुस्कुराता हूँ
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ
शायद यही जिंदगी जिसे जीना है ...सुन्दर अभिव्यक्ति !
मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ
नए रास्तों के बुलावे पर यूं ही मुस्कुराता हूँ
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ
Waah !! Bahut hi khubsurat prastuti !!
बहुत ही बढ़िया सर !
सादर
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