मैं अब जानने लगा हूँ
तस्वीरें भी झूठ हो सकती हैं
क्योंकि
वह सब
जो जिया, भोगा, पाया-खोया
काल प्रवाह में
किसी एक क्षण
व्यर्थ सा लग सकता है
और
वह
जिसे हम व्यर्थ मानते हैं
जिसमें हमारा अर्थ नहीं है
सत्य कैसे हो सकता है हमारा ?
तो फिर क्या है
जो झूठी तस्वीरों से
हमारी और झांकता है
क्या हम
अपनी अंतर्दृष्टि से
आज भी पहुंचा पाते हैं
सत्य किरण का नूतन स्पर्श
उन सब स्थलों तक
जहां जहां
हम हो आये हैं
हममें ये कैसा हुनर है
आज को छोड़े बिना हम
अतीत तक जाते हैं
और भविष्य की टोह भी ले आते हैं
इस तरह
कालातीत होने का स्वांग तो भरते हैं
पर कालमुक्त नहीं हो पाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क
सितम्बर ३०, २०१४
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