अब भी लगता है
नया नया हूँ धरती पर
इतना कुछ है
जो देखा नहीं
इतना कुछ है
जो जाना नहीं
२
अब भी लगता है
शुरुआत होनी है यात्रा की
या शायद
ये एक भ्रम है
कि होगी ही यात्रा
शायद होना ही यात्रा है
३
क्यों लगता है बार बार
खाना पीना
बोलना, मिलना, कुछ नाम, कुछ पैसा जोड़ लेना ही
होना नहीं है
इस तरह जो जो हुए
वो फिर किसी क्षण
'ना होने' के कगार पर जा पहुँचते हैं
४
क्या है ऐसा होना
कि जिसके बाद
'ना होना' होता ही नहीं?
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, फरवरी २५, १०
सुबह ६:००बजे
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