१
बंधन हैं या पर्दा पड़ा है आँखों पर
देख नहीं पाता दूर तक
अटका हूँ
इस घेरे में
तोड़ने इसे
कहाँ से लाऊँ
हथौड़ा, कुदाल
और
वह सशक्त इच्छा
जो हिलाये, डुलाये
चलाये
इन जड़ हुए हाथों में
नूतन नृत्य लय
मचल आये
२
मैं वहीं हूँ अब तक
था जहाँ
और रह गया वहीँ
जहां से
बढ़ती रही है
आगे और आगे
दुनियाँ
और अब
पिछड़ जाने की रुलाई भी
ठिठकी है, ठहरी है
भीतर ही
न पिघलता झरना
न उबलता लावा
३
जमे जमे
कैसे जानूं जीवन
कैसे जगाऊँ
कुछ उत्तेजना
कुछ गर्माहट
कुछ ललक
होने- करने - दिखाने की ,
सही -गलत
सफलता-असफलता के प्रश्न से परे
कैसे बढे कदम
अपने आप में
आत्मीयता से
अपनी पूर्णता में
४
लौटना नहीं संभव
बढ़ना आता नहीं
इस मध्य स्थल पर
त्रिशंकु सा अटका
मैं
कितनी सदियों से
पर आज फिर
हुई है हरारत
कांपते होंठों पर
उतरी है पुकार
करो न
अब मेरा उद्धार
- अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ सितंबर २०१६
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