हम सबके पास
अलग अलग आकार
अलग अलग रंग का सत्य है
हम चलते हैं
अपना अपना सत्य लिए
तब भी जब
समन्वय को चीर कर
खंज़र बन सत्य
लहूलुहान करता है
हमें
हम
अपने बहते लहू का बदला लेने
बाध्य होते
चोट पहुंचाने
दूसरों को
अपरिवर्तनीय सत्य का परिचय
छिटका कर
धुएं में घर बना कर
डरे डरे
अब कैसे
समग्र सत्य के समीप जाएँ
अपनी क्षुद्रता को कहाँ छुपाएँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जून २०१६
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