१
लो
जा रही है कविता
उस गली में
रंग इतने सारे लगा कर
मुझसे आँख बचा कर
मेरी धड़कन की ध्वनि लिए
रच रही एक सन्नाटा
२
लो
मेरी कविता
मंदिर के प्रसाद सी
अर्पित होकर विराट को
बाँट रही है
अच्युत की ठाटदार अनुभूति
पल दो पल में
राजा बना देगी आपको
बच कर रहना
यदि रंक रहना प्यारा है
मेरी कविता में समृद्धि की
अक्षय धारा है
३
लो
खिलखिला कर
अब एक अनाम क्षण का हाथ थामें
लुप्त होने को है
वह
सहसा छोड़ कर
शब्द परिधान
फिर भरने को है
सूक्ष्म उड़ान
कविता
आपकी हो जाने के लिए
यही प्रक्रिया अपनाती है
शब्दों में आती है
शब्दातीत हो जाती है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, १६ मई २०१६
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