प्रभु रमन तेरे दरबार
मिले शांति और प्यार
सांस संतुलन सहज सुलभ
जाग्रत आनंद अपार
प्रभु रमन तेरे दरबार
मधुर मौन उपहार
करूणामय रसधार
अपनेपन का ज्वार
ऐसे तुमने अपनाया
अब मुझको सब स्वीकार
एक अनाम लय होता जिससे
मुखरित स्व का सार
अशोक व्यास
(रचना स्थल - अरूणाचल आश्रम, न्यूयार्क )
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