कभी दिन भागते हैं
कभी हमें भगाते हैं दिन
कभी कुछ न देकर
कभी अधिक दे सताते हैं दिन
छुप कर देखा करते हैं आंसू
जब हमें हँसाते हैं दिन
हम रुक जाते हैं जब थक कर
चुप चाप सरक जाते हैं दिन
वह सब जो छोड़ आये पीछे
यादों में सजाते हैं दिन
किससे करू शिकायत
जब यूँ ही रुलाते हैं दिन
वो कोमल और नाजुक से लम्हे
छू छू कर थरथर्राते हैं दिन
कुछ कहने से डर लगता है
मेरी वेदना से घबराते हैं दिन
तुम समझ सको तो बतलाना
किसका सन्देश लिए आते हैं दिन
एक बात बदलती जाती पल पल
इसे देखते देखते बदल जाते हैं दिन
तुम्हारी आँखों का सन्नाटा है ऐसा
चहकते चहकते संभल जाते हैं दिन
मुझे कब फुर्सत खुदको देखूं
दर्पण दिखा कर गुजर जाते हैं दिन
तुमसे बिछुड़ने के लम्हे दिखा कर
मुझे सारी रात जगाते हैं दिन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ अप्रैल २०१५
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