अब भी यकीन है मुझे
कहीं से बहेगी
ऐसी गंगा
जो सब तक
शांति का सन्देश पहुंचाएगी
मुझे अब भी लगता है
महसूस पाएंगे हम
एक दूसरे के दर्द को
बारूदी गंध भरी है हवा में
पर मुझे लगता है
चमन में
फिर खिलेंगे पुष्प
फिर से आएगी
वो महक
जिसमें मैं अपने
मनुष्य होने की गरिमा सूंघ पाऊंगा
तुम्हारे साथ
२
मुझसे छूटता नहीं
इस आशा का दामन
जो अब भी देख रही है
समन्वय का सपना
जिसके साथ
अपनेपन के किस्से
दिन-रात एक करने के साथ साथ
हमें भी एक कर देते हैं
३
तमाम विसंगतियों के बावजूद
मैं अब तक बचाये हूँ
सबसे एकमेक होने का सपना
जिसके साथ
सहेजी हुई है
मेरे पुरखों की
बरसों की तपस्या
मैं उस परंपरा की पैदावार हूँ
जो बिच्छू को बचाने के लिए
डंक सह लेने से नहीं कतराते थे
मैं उन सबकी शाश्वत आँखों से
देख रहा हूँ
काल को आच्छादित करते कुहासे से पर
एक सौम्य, निर्मल, स्निग्ध सुबह
धरी है
हमारे लिए
इसी धरा पर
जहाँ
इन दिनों सांस लेते हुए भी
अपने सुरक्षित होने पर यकीन करना भी मुश्किल है
फिर भी
ना जाने क्यूँ
मुझे यकीन है
भगीरथ के बुलाने पर
आखिर कहीं से बहेगी
ऐसी गंगा
जो सब तक
शांति और समन्वय का रसमय स्पर्श पहुंचाएगी
आज तो खूनी खबर से लाल है अखबार
शायद कल हिंसा को धो देने वाली
इस नदी के उत्तर आने की
खबर आएगी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ जनवरी २०१५
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