प्रश्न ये सारे
जीवन मृत्यु के
अतीत से वर्तमान और भविष्य को जोड़ते सूत्र में
अपने बारम्बार बदलते प्रतिबिम्ब देख कर उभरने वाले
और
यह प्रश्न
जो प्रश्न उठाने के औचित्य पर भी
प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हैं
समझ में नहीं आता
हम
जिन जिन सतहों के बीच
अपना स्थान बनाते हैं
वहां वहां
बंधे बंधे क्यूँ रह जाते हैं
२
बात जब फिसलती है
कृपा के आलोक में
घर्षण रहित मन
अपेक्षाओं के तराजू में
तौलता है
अमृत की बूंदों का स्वाद
और
अनुग्रह बरखा में
छूट जाता
आशा - निराशा का खेल ,
आशा - निराशा का खेल ,
मुक्त विस्तार में मगन
तन्मय मन
तन्मय मन
सुनने सुनाने से परे
अनंत की महिमा
में रम जाता है
में रम जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
1 comment:
बहुत ही खुबसुरत रचनाएँ
Rohitas Ghorela: सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
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