चुनौती होती है अपना सामना करने की
इसलिए नहीं कि हम खतरनाक हैं
बल्कि इसलिए
कि हम
अपने विस्तार की टोह लेते लेते
इतनी दूर निकल जाते हैं
कि खुद अपनी नज़रों की
सीमारेखा पार कर जाते हैं
२
सोचते हैं
जीवन के पीछे भाग रहे हैं
पर वो क्या जीवन
कि खुद से मिल ही नहीं पाते हैं
३
और रोचक बात ये है
कि कोई खुद से मिलने की बात कहे
तो हम उसे
अव्यावहारिक बताते हैं
कभी कभी यूं भी होता है
की सोच समझ कर
कहीं पर
अपनी सोच का सौदा कर आते हैं
सौंप कर अपना बहुमूल्य मन
कुछ कंकर, पत्थर बटोर लाते हैं
४
क्या होता है
उस सबका
जो कुछ हम जीवन भर
दौड़-धूप कर करके जुटाते हैं
चाहे जहाँ तक पहुंचें
एक दिन आँख बंद करके
लम्बी नींद सो जाते हैं
५
जब कोई
इस ना टूटने वाली नींद का जिक्र करे
कभी हम घबराते हैं
कभी इस बोध से पलट जाते हैं
अटल को नकार कर
टलने वाले सत्य में अटक जाते हैं
६
तो क्या
बनाने वाले ने हमें
अटकने और लटकने के लिए ही बनाया है
या
हमारी साँसों में
शाश्वत का कोई 'कोड' भी समाया है
७
शायद इस कोड में
छुपा है मुक्ति का द्वार,
शायद हम जा सकते हैं
मृत्यु के पार,
और शायद इसे ना जान
पाने में भी है कुछ सार,
क्योंकी जो जो हम जान लेते हैं
उससे से तो बना लेते हैं दीवार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ फरवरी २०१०, सोमवार
सुबह ७ बजे
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