कभी कभी मौन अपना ऐसे
जैसे शांत साम्राज्य हो अतुलित वैभव वाला
कभी कभी चुप्पी अपनी ऐसी
जैसे गोपाल के पीछे चलता ग्वाला
२
इस क्षण और इससे अगले क्षण के बीच
एक महीन सा उजाला है
इस जगह
जहाँ समय निश्चल होकर सुस्ताता है
यहाँ पर
जो अनिर्वचनीय सुन्दरता है
चिड़िया की मधुरतम बोली है
ऐसी शांति है
कि जिसको ढूँढने
हम एक क्षण से दुसरे क्षण तक दौड़ते रहते हैं हमेशा
यहाँ मैं ना जाने
कैसे आ गया
और अब यहाँ का चित्र लेकर
तुम्हे दिखाने का विचार आते ही
फ़ोन आ गया तुम्हारा
लो कालातीत की अनुभूति लेकर
आ गया हूँ
काल की सीमाओं में
जैसे घर की दीवारों में रहते हुए
जानते हैं हम
फैला हुआ है शहर, संसार
घर की सीमा के पार
ऐसे ही
जान गया हूँ
नए सिरे से
काल में हैं हम
पर इस काल से परे भी कुछ है
और
उसका भी कुछ सम्बन्ध है हमसे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ फरवरी २०१०, रविवार
सुबह ८ बज कर ४८ मिनट
No comments:
Post a Comment