कविता : क्यूँ किसी से होते नाराज़
कविता ने प्रेम से बता दिया फिर आज
क्यूँ किसी से हो जाते हैं हम नाराज़
नाराजगी में तो है बंधन, मुक्त मन हेतु
करें अपनेपन प्रसूत अपेक्षा का इलाज
सच्चा आनंद तो अनंत की परवाज़
नहीं वो कभी किसी का मोहताज
मिलने मिलाने, खोने पाने से परे
शाश्वत सुर सुनाये श्रद्धा का साज
नित्य विस्तार अनुभूति दिलाए जो
वह निरंतर साथी ही सच्चा हमराज़
दोहे
सुमिरन रस अनमोल धन, तन्मयता की तान
गुरु कृपा से सुलभ हो, आत्म सुधा रस पान
भज मन गंगा अवतरण, कृपा नदी विश्राम
करूणा श्री गुरुदेव की शुद्ध करे मन-प्राण
अमृत की इस प्यास से, ज्योतिर्मय दिन-रैन
सजग सतत यह प्यास भी सहज दिलाए चैन
शास्त्र और गुरु संग हैं, नहीं रहा कुछ शेष
रसमय यह हरिकृपा भी, बदले कितने भेष
प्रकट हुआ आँगन मेरे, दीप्त अनंत उजास
मित्र सुदामा पा गए, ज्यों वैभव में वास
- अशोक व्यास
न्यूयार्क, ४ जनवरी २०१८
1 comment:
प्रेमपूर्ण कविता, अहोभाव
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