उसके मुस्कुराते साये में थी शीतलता
वो जैसे एक चलता - फिरता पीपल था
आज भी बना तो है साथ उसका
चाहे वैसा न सही, जैसा कल था
२
वो सक्रिय रहा करता था निरंतर
नित्य मुखरित, करूणा का स्वर
कहाँ से पाता था वो स्नेह इतना
जिसे लुटाया करता था सब पर
- अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
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