यह कविता कृतज्ञता की ताज़ी बरखा का भीगापन है
समर्पण की भूमि से स्नेह की सौंधी सौरभ है
यह कविता स्मृतियों की श्रृंखला में
सूक्ष्म अपनेपन का एक सूत्र है
अपेक्षा से मुक्त, आभार का उन्मुक्त गान है
यह कविता अनंत के साथ अनंत की ओर उड़ान है
यह कविता मेरा जीवन है, जिसमें कई दिशाओं से उतरती मुस्कान है
आज उन सब दिशाओं को साधते सारथी का सहज सा विनम्र गुणगान है
नाम में कैसे समाये, वह, जिसके होने से हर नाम में महानता विद्यमान है
आज विस्तार की अनाम पुकार में, श्रद्धा के नए स्वरों की मधुमय तान है
निश्छल पगडंडी पर अबोध बालक और आनंद वृष्टि
यह आडम्बर मुक्त क्षितिज तक देखने वाली दृष्टि
उसमें तन्मय होने की ललक, जिससे बनी है सारी सृष्टि
यह कविता, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का परिचय पूछने में नहीं
अपना परिचय शक्तिप्रदाता को सौंपने का एक
विस्मित चरण है
हर शब्द में विस्मय है
हर सांस में विस्मय है
मेरा होना
और
इन शब्दों के
पावन वन में विचरण करना
पाठक को करे न करे
लेखन का निमित्त बनते, मुझे अवश्य विस्मित करता है
वह
जो हर विस्मय या चमत्कार को सहज कर देता है
उसको शीश नवाता हूँ
मैं झूठा हूँ
अपने प्रार्थना के क्षणों को न जाने क्यूँ कविता
की संज्ञा दे जाता हूँ
बस इस तरह अखंड चेतना के साथ
अपना जन्मदिन मनाता हूँ
और लो, वहां से मिले संकेत लेकर, मैं
अपने जन्म- मरण से परे होने की बात को
सचमुच मान जाता हूँ
जीवन विधाता का विशेष पारितोष है
पर ये कविता अपने अमर होने का उद्घोष है
लहर आये या जाए, हर सांस में
सागर सखा होने का संतोष है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अगस्त २०१४
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