Thursday, January 19, 2012

एक सूक्ष्म सा तंतु

यह एक सूक्ष्म सा तंतु
जो जोड़े रहता है
हमें
किसी सम्बन्ध
या
किसी कर्म की
लय से,

इस 
विस्मयकारी शक्ति को
निहारते हुए भी
नहीं पहचान पाता
इसके नित्य परिवर्तनशील स्वभाव का खेल 

कभी उन्नत लहर की तरह
मुझे धारण कर
चलता जाता है
यह तंतु
दिन प्रतिदिन
मुझे सृजन केंद्र बना कर
रचता जाता है
कुछ आल्हादकारी अभिव्यक्ति रूप

और 
कभी
सबसे असम्पृक्त कर मुझे
ना जाने
कहाँ
स्वयं भी
शांति, मगन अपनी पूर्णता में
सुस्ताता है 
ये
अनंत स्त्रोत से
शक्ति संचय करने
मुझसे दूरी बनाता है



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ जनवरी 2012               

No comments:

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...