तेल की धारा जैसे
बहता ही नहीं
ध्यान उसका
टूटता है
जुड़ता है
फिर टूट जाता है
और इस युग्म के बीच
मुझसे मेरा परिचय
छूट जाता है
२
परिचय छूट जाने से
बदल जाती है भूमिका
बदलती गति की दिशा, गंतव्य का पता
अपरिचित स्वयं से
अपने ही नगर में
भटक जाता
ढूंढता रहता है कुछ
ये जाने बिना कि
तलाश किसकी है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अगस्त २०११
2 comments:
हम सब जीवो की यही दशा है एक तलाश मे निकले है मगर खुद ही भ्रमित हो जाते हैं।
उस अपरिचित की खोज में हम सब लगे हैं।
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